जालंधर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत 30 नवंबर को झारखंड के देवघर में 10 हजारवें जन औषधि केंद्र का उद्घाटन करते हुए इस महत्वपूर्ण योजना को और आगे ले जाने का मंतव्य प्रकट किया था, किंतु पंजाब में यह योजना बदहाली का शिकार है।
अधिकांश केंद्रों पर जरूरी दवाएं नहीं मिल रही
वर्ष 2008 में अमृतसर के सिविल अस्पताल में राज्य का पहला जन औषधि केंद्र खुला था तो हरमीत सिंह की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। अब 15 वर्ष बाद सस्ती दवा उपलब्ध कराने की यह व्यवस्था ही लोगों को ‘दर्द’ दे रही है। अधिकांश केंद्रों पर जरूरी दवाएं नहीं मिल रही हैं।
पंजाब में सरकारी और निजी मिलाकर कुल 334 केंद्र
वेबसाइट janaushadhi.gov.in के अनुसार, राज्य में सरकारी और निजी मिलाकर कुल 334 केंद्र हैं, जो कि सक्रिय हैं। हालात ये हैं कि अमृतसर में खुला पहला जन औषधि केंद्र तीन वर्ष और जालंधर का केंद्र दो वर्ष से बंद है। व्यवस्था है कि डाक्टर ब्रांड नहीं, बल्कि साल्ट या जेनेरिक दवा का नाम लिखेंगे।
कई जिलों में स्थिति इसके विपरीत है, सरकारी डाक्टर साल्ट की जगह दवा के ब्रांड का नाम लिखते हैं। जेनेरिक व ब्रांडेड दवा में फर्क यही है कि जेनेरिक दवा किसी भी बीमारी के लिए बनाया गया साल्ट है। उस साल्ट को जब किसी कंपनी द्वारा मार्केट में उतारा जाता है तो उसे ब्रांडेड कहते हैं। जेनेरिक दवाएं सस्ती मिलती हैं, क्योंकि इसमें केंद्र सरकार का दखल है।
व्यवस्था का सच: बीपी, हार्मोंस व त्वचा संबंधी दवाएं कभी नहीं मिलती
लुधियाना स्थित जन औषधि केंद्र की स्थिति जानने के लिए दैनिक जागरण की टीम ने जायजा लिया। एक घंटे के भीतर 11 मरीज दवा न मिलने पर लौट गए। हैबोवाल के अमरजीत व खुड्ड मोहल्ला निवासी आदर्श ने बताया कि यहां भले ही दवाएं सस्ती हैं, लेकिन बीपी, हार्मोंस और दौरे संबंधी जरूरी जीवनरक्षक दवाएं कभी नहीं मिलती हैं।
खासकर, त्वचा से संबंधित बीमारियों की दवाएं यहां नहीं होती है। लोगों को ये दवाएं औषधालय से महंगे दाम पर खरीदनी पड़ रही हैं, जबकि केंद्र से ये दवाएं 80 से 90 फीसदी तक कम कीमत में मिलती हैं। वहीं केंद्र के खुलने और बंद होने का समय भी तय नहीं है।