पानीपत। विश्व वर्ल्ड क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) दिवस हर साल नवंबर के तीसरे बुधवार को आयोजित किया जाता है। इस साल की थीम सांस लेना ही जीवन है। विशेषज्ञों के अनुसार, धूल-धुंआ-धूमपान के कारण सीओपीडी के मरीज बढ़ रहे हैं। इसी कड़ी में जिला नागरिक अस्पताल सहित निजी अस्पतालों में जागरूकता-जांच शिविर आयोजित होंगे।
ये हैं लक्षण
सिविल सर्जन डा. जयंत आहूजा ने बताया कि सीओपीडी, अस्थमा का ही घातक रूप है। दोनों के लक्षण लगभग एक जैसे हैं। जिला की 10 प्रतिशत से अधिक है। इनमें से लगभग 10 प्रतिशत सीओपीडी ग्रस्त हैं। उन्होंने बताया कि सीओपीडी तीन तरह की होती है, माइल्ड सीओपीडी, जिसमें खांसी में बलगम आना और सांस फूलना लक्षण हैं। मोडरेट सीओपीडी में इन दोनों लक्षणों के साथ छाती में इंफेक्शन को ठीक होने में कई सप्ताह लग जाना
सीवियर सीओपीडी इन तीनों लक्षणों के अतिरिक्त बैठे हुए भी सांस फूल जाना है। बीड़ी-सिगरेट, हुक्का पीने से अस्थमा-सीओपीडी की समस्या होती है। घरों के फर्श पर बिछ़े कालीन से निकली धूल, महीन रेशे, कंस्ट्रक्शन साइट्स से उड़ते धूल के कण वातवरण में तैरते हैं, श्वास के साथ फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं।
ये हैं प्रमुख कारण
वाहनों, उद्योगों, घर में बने चूल्हों और कोयला लकड़ियों से सुलगने वाली भट्टियां भी सीओपीडी का बड़ा कारण हैं। डा. आहूजा के मुताबिक सीओपीडी के मरीज विशेषज्ञ चिकित्सक के परामर्श से इनहेलर लेना शुरू करें। इनहेलर की शीशी को हमेशा अपने साथ रखें। अधिक मेहनत का काम करने से बचें।
किससे कितना दुष्परिणाम
चूल्हे का धुआं : प्रतिदिन 25 सिगरेट
पूजा की धूप : प्रतिदिन 50 सिगरेट
मच्छर अगरबत्ती (एक रात में) 100 सिगरेट
यह भी जानें : अस्थमा का इलाज-परहेज ठीक से न कराया जाए तो मरीजों में सीओपीडी (क्रोनिक ऑबस्ट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज) की संभावना बढ़ जाती है। एक स्टेज के बाद इस रोग का इलाज भी संभव नहीं है। यह रोग दुनिया का पांचवां सबसे घातक रोग बन चुका है। बीमारी से मौत के मामले में दूसरे नंबर पर है।