नई दिल्ली। देश के ज्यादातर राज्यों की वित्तीय सेहत मजबूत नहीं है। 11 राज्य बीते 8 साल से लगातार राजस्व घाटे का सामना कर रहे हैं। यानी उनके पास वेतन, पेंशन और ब्याज चुकाने जैसे कामों के लिए भी पर्याप्त राजस्व इकट्ठा नहीं हो पा रहा है। ऐसे हालात में चुनावी मौसम में की जाने वाली लोकलुभावन योजनाएं राज्यों का वित्तीय हाजमा और बिगाड़ सकती हैं।
राज्यों के वित्तीय हालात जानने के लिए जागरण प्राइम ने 5 राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु के बजट का जायजा लिया। इसमें मध्य प्रदेश के अलावा सभी चार राज्य राजस्व घाटे में थे। इन चारों राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद ( जीएसडीपी) की तुलना में राजस्व राष्ट्रीय औसत से कम था। राजस्व घाटे का मतलब है कि किसी राज्य की राजस्व से आय उसके वेतन, पेंशन, सब्सिडी और ब्याज भुगतान जैसे खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
राजस्थान सब्सिडी का 97%, पंजाब 80% हिस्सा बिजली पर खर्च रहे
गैर-सरकारी संस्था पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की सालाना रिपोर्ट स्टेट ऑफ स्टेट फाइनेंसेज के मुताबिक, वित्तीय स्थिति खराब होने के बावजूद राजस्थान अपनी कुल सब्सिडी का 97% हिस्सा, जबकि पंजाब अपनी कुल सब्सिडी का 80% हिस्सा बिजली सस्ती करने पर खर्च कर रहे हैं। 2017-18 और 2021-22 के बीच, पंजाब ने अपनी राजस्व प्राप्तियों का 17% सब्सिडी पर खर्च किया। अन्य राज्यों में यह औसत 8% है। इन पांच राज्यों में सिर्फ तमिलनाडु ऐसा राज्य है, जिसके कुल राजस्व में खुद के टैक्स कलेक्शन का हिस्सा दो-तिहाई से अधिक है। अन्य राज्यों की बात करें तो पंजाब की खुद के टैक्स कलेक्शन से आय कुल टैक्स कलेक्शन का 52%, राजस्थान का 49%, मध्य प्रदेश का सिर्फ 38% और पश्चिम बंगाल का 42% है।
इस तंगहाली की एक वजह ये है कि राज्यों के खुद के टैक्स कलेक्शन में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की हिस्सेदारी 43% है। लेकिन यह राज्यों को उम्मीद के मुताबिक राजस्व नहीं दे पा रही है। ज्यादातर राज्यों में एसजीएसटी से मिलने वाला राजस्व जीएसटी की शुरुआत में उन्हें मिली गारंटीड आय से कम है। जीएसटी क्षतिपूर्ति अनुदान पिछले साल ही समाप्त हो गया है।
स्टेट ऑफ स्टेट फाइनेंसेज रिपोर्ट के मुताबिक, राज्यों के लिए जीएसटी मुआवजा जून 2022 में समाप्त हो गया, लेकिन 26 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में एसजीएसटी राजस्व प्री-जीएसटी अवधि और गारंटीकृत राजस्व दोनों से कम बना हुआ है। नॉर्थ-ईस्ट के पांच राज्यों के अलावा सभी राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश इसमें शामिल हैं। इधर, केंद्र सरकार ने पिछले साल ऑफ-बजट कर्जों को भी राज्य सरकार की उधार सीमा में शामिल कर दिया है। इससे राज्यों के पास कर्ज लेने का ज्यादा ज्यादा गुंजाइश नहीं बची है।
जीएसटी को जुलाई 2017 में लागू किया गया था। इसमें केंद्र और राज्य दोनों के स्तर पर कई करों को शामिल किया गया था। जीएसटी में जो टैक्स समाहित किए थे, उनसे राज्यों को प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद ( जीएसडीपी) का लगभग 3% राजस्व आता था। लेकिन वर्ष 2018-19 में यह अनुपात 2.7% से कम रहा। बाद के वर्षों में भी राज्यों का जीएसटी राजस्व जीएसडीपी के 3% के स्तर से नीचे ही रहा है।
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के एनालिस्ट तुषार चक्रवर्ती और तन्वी विप्रा कहते हैं, केंद्र सरकार ने पांच साल तक राज्यों को 14% की वार्षिक जीएसटी राजस्व वृद्धि की गारंटी दी थी। जीएसटी लागू होने के बाद जो राज्य इस गारंटीकृत राजस्व से पीछे रह गए, उन्हें जून 2022 के अंत तक मुआवजा दिया गया। इसके बाद यह मुआवजा बंद हो गया। लेकिन राज्यों के जीएसटी राजस्व में उम्मीद के मुताबिक बढ़ोतरी नहीं हुई। इसकी एक वजह ये है कि राज्यों की जीएसडीपी 2018-19 और 2022-23 के बीच 9.6% की चक्रवृद्धि दर से बढ़ी, जो कि 14% की गारंटीकृत रेवेन्यू वृद्धि दर से काफी कम है।
उद्योग संगठन पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स की अप्रत्यक्ष कर समिति के चेयरमैन और सीए बिमल जैन कहते हैं, जिन राज्यों का एसजीएसटी से राजस्व उम्मीद के मुताबिक नहीं आ रहा है, वह पांच साल और गारंटीड राजस्व की मांग कर रहे हैं। अगर ये मांग मानी जाती है तो फिर कंपनसेशन सेस लगाना पड़ेगा। लेकिन, परेशानी ये है कि कोरोनाकाल में लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए केंद्र पहले ही कंपनशेसन सेस की अवधि बढ़ा चुका है। ऐसे में जीएसटी काउंसिल ये मांग शायद ही माने।
जैन कहते हैं, दूसरा विकल्प ये है कि केंद्र सरकार राज्यों का बजट घाटा पूरा करने के लिए नॉमिनल रेट पर कर्ज मुहैया करा सकती है। तीसरा विकल्प है, राज्य अंतरराज्यीय वस्तु एवं सेवाओं पर एसजीएसटी की दर को बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए, किसी वस्तु का निर्माण और खपत उसी राज्य में हो रहा है और उस पर जीएसटी की दर 18 फीसदी है। इसमें 9 फीसदी राज्य का एसजीएसटी होगा और 9 फीसदी केंद्र का सीजीएसटी होगा। राज्य चाहे तो अंतरराज्यीय मामलों में एसजीएसटी की दर 9 की जगह बढ़ाकर 11 फीसदी कर दे। इससे उस वस्तु पर कुल कर 18 से बढ़कर 20 फीसदी हो जाएगा।
घाटे से जूझ रहे राज्यों ने बहरहाल चालू वित्त वर्ष से, अलग-अलग तरीकों से अपने राजस्व में बढ़ाेतरी की कोशिश की है। जैसे, कर्नाटक ने देसी शराब पर अतिरिक्त आबकारी शुल्क में 20% वृद्धि की घोषणा की है। गोवा ने भारत में निर्मित विदेशी शराब पर शुल्क बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है। हिमाचल प्रदेश ने घोषणा की है कि वह बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी पर जल उपकर लगाएगा। केरल ने मकान पर स्टांप शुल्क 5% से बढ़ाकर 7% करने का प्रस्ताव रखा है।
राज्यों के सामने आ रहे इस संकट को 15वें वित्त आयोग ने पहले ही भांप लिया था। आयोग ने सलाह दी थी कि राज्यों और स्थानीय निकायों के लिए अतिरिक्त राजस्व जुटाने के लिए स्टांप शुल्क, पंजीकरण शुल्क और संपत्ति कर का उपयोग किया जा सकता है। इसके अलावा, वित्त आयोग ने जीएसटी के 12% और 18% स्लैब का विलय करने और जीएसटी मुक्त वस्तुओं में कमी करने की सिफारिश की थी।
हेल्थ टैक्स लगाकर राज्य हासिल कर सकते हैं राजस्व
उपभोक्ता अधिकारों पर काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था कंज्यूमर वॉइस के चीफ ऑपरेटिंग ऑफीसर आशिम सान्याल कहते हैं, राज्य हेल्थ टैक्स लगाकर अपनी वित्तीय सेहत सुधार सकते हैं। हेल्थ टैक्स असल में उत्पाद शुल्क का ही एक प्रकार हैं, जो उन उत्पादों पर लगाए जाते हैं जिनका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर स्पष्ट नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तंबाकू और शराब पर प्राय: हेल्थ टैक्स लगाया जाता है। 70% से अधिक देशों में इसका इस्तेमाल होता है। इनमें से 32 देशों में तो यह महंगाई के हिसाब से अपने आप बढ़ जाता है।
वहीं, विमल जैन लंबी अवधि में इस समस्या का एक ही समाधान मानते हैं, वह है राज्यों की अर्थव्यवस्था में सुधार। वे कहते हैं, संगठित क्षेत्र को असंगठित क्षेत्र पर बढ़ावा देना होगा, तभी उनका जीएसटी संग्रह बढ़ पाएगा।
ओल्ड पेंशन स्कीम अपनाने से 2034 से बढ़ेगा बोझ: रिपोर्ट
स्टेट ऑफ स्टेट फाइनेंसेज रिपोर्ट के मुताबिक, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, पंजाब और राजस्थान ने एनपीएस से हटने और ओल्ड पेंशन स्कीम को फिर से लागू करने का फैसला किया है। राज्य सरकारों के वर्तमान सेवानिवृत्त लोग पहले ही ओल्ड पेंशन स्कीम के हकदार हैं। इसलिए अगर राज्य ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू करना चुनते हैं तो उन्हें तत्काल वित्तीय तनाव महसूस नहीं होगा, लेकिन एनपीएस के कार्यान्वयन के बाद शामिल हुए कर्मचारी जब 2034 से रिटायर होना शुरू होंगे तब राज्य पर अतिरिक्त बोझ आना शुरू हो जाएगा।